सती प्रथा क्या हे | What is sati pratha | shocking facts of sati pratha

सती प्रथा { sati pratha } के अनुसार जब भी किसी महिला के पति की मुर्त्यु हो जाती तो पति की चिता के साथ साथ पत्नी को भी चिता पर बिठा दिया जाता था । ओर इस प्रकार एक पुरा परिवार खत्म हो जाता था । बच्चो से उनकी माँ का सहारा भी छुट जाता था ।

दक्ष द्वारा एक शानदार यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सती और शिव को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया था। सती इस समय अपने परिवार से मिलना चाहती थीं लेकिन उनके पिता ने उन्हें आमंत्रित नहीं किया। शिव ने उसे मना करने की कोशिश की, लेकिन जाने पर वह जिद पर अड़ी रही। शिव ने तब उसे यज्ञ में भाग लेने के लिए एक मार्गदर्शक प्रदान किया।

यज्ञ मे भाग लेने के बाद पिता ने सति का स्वागत अच्चे से नही किया। ओर वे शिव कि बुराइया करने लग गये । दक्ष ने शिव की हर तरह से अपमान किया और सती इस गाली को सहन नहीं कर सकीं। उसने सोचा कि यज्ञ में भाग लेने से वह अपने पति के अपमान का एकमात्र कारण बन रही है। सती अपने पिता के प्रति क्रोध और उनकी मानसिकता के लिए घृणा से भस्म हो गईं। सती ने तब अपनी शक्तियों से स्वयं को भस्म कर लिया।

सती कोन थी ? | Who is sati

सती भगवान शीव की पत्नी थी ओर दछ प्रजापति की बेटी थी । प्रजापति दछ् के तप से खुश होकर मा भगवती ने उन्हे दृशन दिये ओर कहा मे तुम्हारे यहां तुम्हारी पुत्री के रूप मे जन्म लूंगी ओर मेरा नाम सती होगा । 

सती दिव्य प्रकृति या प्रकृति का प्रतीक है। उनका जन्म दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में हुआ था। गौरी और सुनहरे रंग के कारण उनका नाम गौरी रखा गया। दक्ष की पुत्री होने के कारण इन्हें दक्षिणायनी भी कहा जाता है। उन्हें उमा, अपर्णा और शिवकामिनी जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।

सती का अर्थ है ‘सत्य’। उन्हें राजा दक्ष की पुत्रियों में से एक कहा जाता है। सती को दक्षिणायनी के नाम से भी जाना जाता है और वैवाहिक सुख और लंबे जीवन की हिंदू देवी हैं। सभी हिंदू महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इनकी पूजा करती हैं। सती भगवान शिव की पहली पत्नी हैं और उनकी दूसरी पत्नी सती का अवतार पार्वती हैं।

sati pratha
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भारत मे सती प्रथा | sati pratha in India

15 वी से 18 वी शताब्दी के बीच हर सल 1000 से भी ज्यादा महिलाये सती हो जाती थी । यह भारत , नेपाल , रूस , वियतनाम कई देशो मे प्रचलित थी । 

इसी के साथ लोग महिलाओ को जबरदस्ती सती होने के लिए मजबूर किया जाता था ताकि लोग उसके मृत पति की सम्पति को हड़प सके । 

इसके साथ ही प्राचीन काल मे युद्ध मे महिलाओ के पति की मुर्त्यु हो जाने पर अपने आत्मसमान के कारण पति की चिता के साथ सती हो जाती थी ।

सती प्रथा कब शुरु हुई थी | When sati pratha was started 

सती प्रथा के शुरु होने के कई अनुमान लगाए जाते हे ।

  • भारत की पहली सती :  माना जाता हे की माँ दुर्गा के रूप सती के पिता ने उनके पति भगवान शिव का अपमान किया इसी से नाराज होकर सती ने आत्मदाह कर लिया ओर यही से सती प्रथा की शुरुआत हुई लेकिन ये प्रमाण भी इतना सही नही माना जाता क्यूंकि उस वक्त उनके पति जिंदा थे । 
  • इसी के साथ गुप्तकाल मे 510 ईस्वी के आस पास  भारतीय इतिहास मे इसके प्रमाण मिलते हैं महाराजा गोपराज जो की महाराज भानुप्रताप के राज घराने से थे की युद्ध मे मुर्त्यु के बाद उनकी पत्नी ने भी अपने प्राण त्याग दिये थे ।
  • बंगाल मे12 वी शताब्दी की शुरुआत मे सती प्रथा शुरु हो गयी थी सबसे पहले यह छत्रीय जाति मे की जाती थी फिर धीरे धीरे यह अन्य जातियों मे भी फेल गयी । 

सती प्रथा का अंत किसने किया था ? When sati pratha ended

सती प्रथा का अंत 04 दिसम्बर 1829 को हुआ जहा विलियम बेटिंक की अगुवाई ओर राजा राममोहन राय के प्रयासों से इस पर रोक लगा दी गयी ।

इसी के साथ राजा राममोहन राय ने बाल विवाह , कन्या भूर्ण हत्या ओर कई सामजिक बुराइयों को खत्म करने का प्रयास किया । इन्होने विदवा विवाह को भी सही बताया था ।

सती की मुर्त्यु के बाद क्या हुआ  ?

सती की मुर्त्यु के बाद भगवान शिव ने सती के शरीर को उठाया ओर पुरी दुनिया मे दुख मे घूमते रहे । इस कारण सती के शरीर के 51 हिस्से देस के अलग अलग कोनो मे गिरे ओर ईस कारण 51 सक्ति पिठो का घठन  । 

जब भगवान शिव को इस तबाही का पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने यज्ञ क्षेत्र में अराजकता और अव्यवस्था फैलाने वाले दो भयंकर प्राणियों वीरभद्र और भद्रकाली का निर्माण किया। दक्ष सहित यज्ञ में उपस्थित सभी लोग भयभीत थे। नाराज शिव ने सती के जले हुए शरीर को अपने कंधों पर लेकर भयानक और विस्मयकारी तांडव नृत्य किया। इस नृत्य के दौरान सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े होकर धरती पर अलग-अलग जगहों पर गिरे।

एक अन्य संस्करण में यह वर्णन किया गया है कि, भगवान शिव ने सती के शरीर को अपने कंधे पर रखा और दुःख से व्याकुल होकर संसार में दौड़े। देवताओं ने भयभीत होकर भगवान विष्णु से शिव को ज्ञान लौटाने का आह्वान किया। विष्णु ने सती के निर्जीव शरीर को चीरने के लिए अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग किया, जिसके बाद शिव को शांति मिली। सती के शरीर के अंग पृथ्वी पर बावन स्थानों पर गिरे। पवित्र बावन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है, और ये तीर्थ स्थान हैं।

ये शक्ति पीठ अटाहास , बहुला , भवानीपुर , भैरव पर्वत , गंडकी , जन स्थान , हिंगलांज , जयंती , योगेशवरी , ज्वाला , काली घाट , कलमादव , कामाख्या , किरीट , मनसा , मिथिला आदि हे ।  

सती के जन्म का उद्देश्य भगवान शिव को उनकी विनम्र भक्ति के साथ प्रसन्न करना और उनसे विवाह करना था। सती बड़ी होकर भगवान शिव की उत्कट अनुयायी बन गईं। सती के बड़े होने पर, उनके पिता ने उन्हें शादी करने के लिए राजी किया लेकिन सती को यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया। उसने उन सभी राजाओं और देवताओं को अस्वीकार कर दिया जिन्होंने उससे विवाह करने का अनुमान लगाया था।

सती का जन्म

सती के जन्म का उद्देश्य भगवान शिव को उनकी विनम्र भक्ति से प्रसन्न करना और उनसे विवाह करना था। सती बड़ी होकर भगवान शिव की समर्पित अनुयायी बन गईं। सती के बड़े होने पर उनके पिता ने उन पर विवाह करने का दबाव डाला लेकिन सती को यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया। उसने उन सभी राजाओं और देवताओं को अस्वीकार कर दिया, जिन्होंने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा था।

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